डॉ राजीव लोचन ने बताया कि मानसिक रोग छुआछूत से नहीं फैलता यारों किसी को भी हो सकता है छात्र-छात्राओं में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति या एक चिंतन का विषय है जिस के रोकथाम के लिए शासन द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं उन्होंने यह भी बताया बलरामपुर जिला चिकित्सालय में मानसिक स्वास्थ्य कोष का गठन किया गया है जिसके अंतर्गत सप्ताह के 6 दिन ओपीडी चलाई जाती है जिसके अंतर्गत मनोचिकित्सक डॉ अभय सिंह द्वारा मनु रोगियों का उपचार किया जाता है वह औषधियां भी निशुल्क प्राप्त होती है
साइकेट्रिस्ट सोशल वर्कर रवि द्विवेदी ने मानसिक स्वास्थ्य की बारे में बताया बताया की की अनजान भाई बार-बार बुरा होने का विचार झुनझुनाहट एवं अत्यधिक चिंता या ना
तनाव महसूस होना जल्दी थकान का आना
हाथों में कंपन होना
अंधेरे में भय लगना अजनबी यों से भय लगना
नींद आने में परेशानी एवं रात में बार-बार नींद खुल जाना मन में उत्साह की कमी होना
मानसिक व्याधियाँ या मानसिक रोग, मस्तिष्क की उस व्यवस्था या अति व्यस्तता की स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के सोच, अनुभव, ज्ञान , चेतना एवं समाज के सामान्य नियमों के अनुरूप व्यवहार करके और अपने को सम्बद्ध करने की योग्यता में कमी आ जाती है या छिन्न भिन्न जो जाती है। आज भारत में लगभग दो करोड़ व्यक्ति गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रसित हैं। इसके अतिरिक्त 5 से 10 करोड़ लोग साधारण मानसिक समस्याओं बसे ग्रसित हैं।
मानसिक रोग के कारण क्या हैं?
मस्तिष्क में जैविक एवं रासायनिक गड़बड़ी का होना, मस्तिष्क के विभिन्न रोग( मस्तिष्क ज्वर, अशुद्ध रक्त पूर्ति, कैंसर, मिर्गी आदि) , सड़क दुर्घटनाओं से मस्तिष्क आघात आदि इसके अलावा विषैले नशीले द्रव्यों के सेवन , मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए आवश्यक प्रोटीन, विटामिन तथा अन्य तत्वों की कमी। मानसिक रोग होने के मनोवैज्ञानिक एवं परिवेषजनित कारकों का भी कम महत्व नहीं है इनमें मुख्यतया सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण जैसे -- व्यक्ति के संबंधों में अनेक कारणों से तनाव उत्पन्न हो जाना, आर्थिक परेशानी, वैवाहिक जीवन की समस्या , प्रियजनों से विद्रोह, कलुषित पारिवारिक वातावरण , बार- बार कुंठाओं से ग्रसित होता, स्नेह व प्यार की कमी, बेरोजगारी, तीव्र सामाजिक परिवर्तन आदि अनेक मनोसामाजिक समस्याएं हैं।
कुछ भ्रांतियाँ -- मआंशिक रोग या पागलपन एक ऐसा शब्द है जिससे इसके कारणों एवं उपचार के विषय में न जाने कितनी भ्रांतियाँ एवं आशंकाएँ जुड़ी हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवंशिक एवं छूत की बीमारी मानते हैं , तो कुछ जादू- टोना, भूत- प्रेत व डायन का प्रकोप। दूसरी तरफ कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का नाटक मात्रा भो मानते हैं। उपचार के लिए स्थानीय या नजदीकी ओझा, पंडित, मुल्ला आदि के पास जाकर अनावश्यक भभूत, जड़ी- बूटी का सेवन करतें हैं तथा अमानवीय ढंग से सताये जाते हैं ताकि पिशाच आत्मा कब्प्रकोप दूर किया जा सके। " सही धरना यह है कि है कि यह एक बीमारी है और वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसका इलाज संभव है।"
नई चिकित्सा पद्धति के विकास के बावजूद मानसिक रोगियों में वृद्धि पर नियंत्रण तथा उनके उपचार का अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ रहा है?
हाँ, इस क्षेत्र में अभोतपूर्व विकास हुआ है और प्रयास जारी है। यधपि हमारे देश में मानसिक रोगियों की संख्या के हिसाब से सुविधाएं काम तथा शहरी इलाके तक सीमित हैं, फिर भी जो भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं, बहुसंख्य लोग इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इसके कई कारण हैं-- अशिक्षा, अज्ञानता, पूर्वाग्रही मनिवृति, अंधविश्वास, सोचने का पुरातन दृष्टिकोण, इस रोग से जुड़े कलंक (स्टिग्मा) नकारात्मक दृष्टिकोण एवं कई प्रकार की भ्रांतियों आदि।
मनोचिकित्सक डॉ अभय सिंह ने वृद्धावस्था में होने वाली मानसिक समस्याओं के बारे में बताया।
वृद्धावस्था में वो तमाम समस्याएँ हो सकती है जो आम लोगों को होती है। इसके अलावा कुछ बीमारियाँ होती है जो इस उम्र के लोगों को विशेष रूप से होती है।जैसे-- डिमेनशिया या , ब्रेन फेलियर
डिमेनशिया के होने की खास संभावना 60 साल के बाद बहुत बढ़ जाती है। इसमें शुरुआत होती है जब बहुत व्यक्ति छोटी- छोटी बातें वर्तमान की भूलने लगे। जैसे-- उसने नाश्ता के लिया या नहीं । क्योंकि वह इन सब बातों को याद नहीं रख पाता वह एक ही काम को बार-बार दोहराता है। लेकित अक्सर यह कहकर या मानकरआश्वस्त हो जाते है कि यह सठिया गकये है। वास्तव में जिसको हम सठिया जाना समझते है वह एक गम्भीर रोग के लक्षण भी हो सकते हैं।
वृद्धावस्था में सभी को ये समस्या होती है?