TRUE MASTER IS THE OCEAN OF BLESSINGS
सतगुरु आशीर्वाद बेशर्त देता है, उससे कृपा सदैव अबाध रूप में बरसती रहती है लेकिन हम ले पाएँ या नहीं, ये हम पर निर्भर है। वर्षा हो और हम छाते की ओट में खड़े हो जाएँ हो हम न भीगेंगे। घड़ा उल्टा रखा हो तो एक भी बूंद आशीर्वाद की भीतर न जाएगी। जब हम गुरु के चरणों में झुकें तो वस्तुतः झुकना होना चाहिए, ऐसा न हो कि शरीर ही झुके और हम जो वास्तव में हैं वो अनझुका रह जाए। गुरु कभी ये नहीं कहता है कि जब हमारी कोई पात्रता होगी तब वह आशीर्वाद देगा लेकिन ये जरूर है कि यदि हमारी पात्रता नहीं होगी तो दिया आशीर्वाद हम तक न पहुँच पाएगा। गुरु आशीर्वाद देता है ये कहना ठीक नहीं बल्कि ये कहना ही उचित है कि गुरु वो है जिससे आशीर्वाद बरसता है। जिस प्रकार फूल खूशबू प्रेषित करने के लिए कुछ करता नहीं है, सूरज अपनी रोशनी बिखेरने के लिए यत्न नहीं करता है, उसी प्रकार गुरु वो है जिससे कृपा बरसती ही है। सतगुरु उस ऊंचाई पर होता है जहां से उससे कृपा बहती है और अगर हम तैयार हों नहाने के लिए तो गुरु के आशीर्वाद से नहा ही लेंगे। गुरु आशीर्वाद देता नहीं है बल्कि वो आशीर्वाद का दान है और सब गुरु के होने में ही समाया है। हम मौजूद हों न हों और गुरु अकेले में भी हो तब भी उससे आशीर्वाद झरता ही है जिस प्रकार दीया एकांत में भी जला हो तो भी उससे रोशनी बरसती ही है या फूल निर्जन में भी खिला हो तो भी खुशबू उससे बहती ही बहती है।हमारा वहाँ पर उपस्थित होना या न होना एक संयोग है। ये संयोग की बात है कि गुरुरूपी दिये का प्रकाश लेकर हम अपनी अंधेरी राहों में प्रकाश कर लें। जिस प्रकार वर्षा का जल जब भूमि में पड़े बीज़ में पहुंचता है तो बीज़ में अंकुरण होता है और वो ऊपर की तरफ यात्रा शुरू कर देता है, ठीक उसी प्रकार जब सतगुरु का कृपारूपी जल हम तक पहुंचता है तो हममें आत्मज्ञान का अंकुरण होता है और परमात्मा की तरफ यात्रा शुरू हो जाती है अर्थात ऊर्जा जो कल तक अधोमुखी थी वो आकाशोन्मुख हो जाती है। गुरु के आशीर्वाद में ही परमात्मा उतरता है क्योंकि परमात्मा का अवतरण सतगुरु के रूप में ही होता है इसलिए हमने उन्ही लोगों को अवतार कहा है जिनके अवतरण से कई सोयी हुयी आत्मायेँ परमात्मा में जागी हैं।
विश्व मोहन सती